Naksali kise kahate hain: नक्सलवाद हमारे देश की एक गंभीर समस्या है। नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों से हम कई बार ऐसी खबरें पढ़ते और सुनते हैं। जिनसे पता चलता है कि वहाँ किस तरह से आम आदमी नक्सलवाद से ग्रस्त है। यहां तक कि जब उनसे निपटने के लिए वहां पुलिस जाती है तो नक्सली उन पर भी हमला कर देते हैं।
लेकिन यदि आप अभी तक नहीं जानते हैं कि नक्सलवाद क्या है या नक्सली किसे कहते हैं तो हमारे इस लेख को अंत तक पढि़ए। अपने इस लेख में हम आपको नक्सलवाद क्या है और उससे कैसे निपटा जा सकता है इन सभी चीजों पर प्रकाश डालने का काम करेंगे।
नक्सलवाद क्या है?
आइए सबसे पहले आपको हम जानकारी देते हैं कि नक्सलवाद क्या है। इसका जवाब ये है कि अपने ही देश के कुछ लोग अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए जब अपनी ही सरकार के खिलाफ हथियार उठा लें तो उन्हें नक्सली कहते हैं। इसके लिए वो बकायदा अपनी फौज तैयार कर लें। लोगों से वसूली करने लगे और जब सरकार उनकी मांग को ना माने तो आंतकी जैसा व्यवहार करना शुरू कर दें। सही मायने में नक्सलवाद एक आंदोलन है। जो कई दशकों से हमारे देश में चला आ रहा है।
नक्सलवाद की शुरूआत कब हुई?
यदि हम नक्सलवाद की शुरूआत की बात करें तो इसकी शुरूआत साल 1967 में हुई थी। उस समय बंगाल में एक नक्सलबाड़ी नाम से गांव था। वहां भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने नक्सलवाद की शुरूआत की थी। ये दोनों ही नेता चीन की नीतियों से काफी प्रभावित थे।
इनका मानना था कि हमारे देश के जो किसान और मजदूर आज गरीब हैं वो आज की सरकारी नीतियों के चलते हैं। लिहाजा हमें उनके खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन करना चाहिए। जिसके बाद जो भी सरकारी कारखाने या जमीनें सरकार उधोग धंधे लगाने के लिए आएं लोग उसके विरोध में उतर जाएं। क्योंकि इसके बाद वहां रहने वाले लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
लेकिन साल 1971 में इस आंदोलन के प्रमुख नेता मजूमदार की मृत्यु हो गई। जिसके बाद ये आंदोलन अपने रास्ते से भी भटक गया और कई अलग अलग शाखाओं में बंट गया। जिसका एक अलग रूप हम और आप देखते हैं। आज इसके बदले हुए रास्ते की सबसे ज्यादा मार आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा, झारखंड को देखनी पड़ रही है।
नक्सली आंदोलन के पीछे प्रमुख कारण
नक्सलवाद क्या है और नक्सली किसे कहते हैं जानने के बाद आइए अब हम आपको नक्सली आंदोलन के मजबूत होने के पीछे कुछ कारण बताते हैं। जिनसे आप समझ सकते हैं कि आखिर हमारे देश में कैसे लगातार नक्सली आंदोलन अपने पैर पसारता गया और हम बैठकर देखते रह गए।
जनजातीय लोगों में नाराजगी
हमारे देश कि जिन इलाके में जनजाती के लोग रहते हैं। अक्सर देखा जाता है कि सरकार से वो नाराज ही रहते हैं। क्योंकि वो चाहते हैं कि उनकी परंपरा और रीति रीवाज आम लोगों से अलग रहें। लेकिन आधुनिकीकरण और अन्य चीजों के चलते उनकी परंपरा टूटती जा रही है।
लिहाजा उन्हें लगता है कि यदि उन्हें अपनी सभ्यता को बचाना है तो नक्सली आंदोलन का हिस्सा बन जाना चाहिए। ताकि सरकार के खिलाफ एक मजबूत आंदोलन खड़ा किया जा सके। क्योंकि नक्सली आंदोलन एक उग्र आंदोलन माना जाता है।
समाज में बढ़ती असमानता
नक्सली आंदोलन के पीछे समाज में असमानता भी जिम्मेदार है। क्योंकि आज भी हमारे देश के कई इलाके ऐसे हैं। जहां विकास के नाम पर बस उनके साथ छलावा हुआ है। ना ही वहाँ अच्छी सड़कें हैं, ना ही स्कूल हैं। इसके अलावा जीवन यापन करने की अन्य सुविधाएं भी वहां मौजूद नहीं हैं। इससे वो लोग नक्सली लोगों के साथ आसानी से जुड़ जाते हैं। क्योंकि नक्सली लोग उन लोगों के जहन में सरकार के खिलाफ आसानी से नफरत फैला सकते हैं।
मजबूत संचार व्यवस्था का अभाव
देश के कई पिछड़े इलाकों में आज भी अच्छी संचार व्यवस्था नहीं है। इसलिए माना जाता है कि जब वहाँ पुलिस प्रशासन किसी तरह की कार्रवाई करना भी चाहता है तो उसके पास वो सभी चीजें मौजूद नहीं होती हैं। जिनसे सही जानकारी जुटाई जा सके। जबकि इसके उलट नक्सली लोग इसका फायदा उठाकर पुलिस प्रशासन पर हमला कर देते हैं।
यही वजह है कि कई बार ऐसे इलाकों में जब नक्सली हमला होता है, तो राहत और बचाव कार्य में भी बहुत लंबा समय लग जाता है। क्योंकि ना तो वहां तक पहुंचने के लिए सही सड़कें होती हैं। ना ही पर्याप्त संचार की व्यवस्था होती है। जिससे राहत और बचाव कार्य में तेजी लाई जा सके।
प्रशासन का सुस्त रवैया
नक्सलवाद के बढ़ने के पीछे प्रशासन का सुस्त रवैया भी जिम्मेदार है। क्योंकि कई बार देखा ये भी जाता है कि प्रशासन जिन इलाकों में अपने कब्जा जमाकर उन्हें नक्सल प्रभावित क्षेत्र से बाहर भी ले आता है। तो वो दोबारा से नक्सल में चले जाते हैं। क्योंकि प्रशासन के लोग उन्हें पूरी तरह से सुविधा नहीं दिलवा पाते हैं। जिससे वहां रहने वाले लोग दोबारा से नक्सली बनने की राह पकड़ लेते हैं।
वोट की राजनीति
नक्सलवाद के बढ़ने के पीछे एक वजह वोट की राजनीति भी है। क्योंकि जिन भी राज्यों में नक्सलवाद प्रभावित जिले हैं। उनमें अक्सर सरकार कोई कड़ा कदम नहीं उठाना चाहती है। क्योंकि माना जाता है इससे उस जिले के वोटर पार्टी विशेष से नाराज हो जाएंगे। जिससे उन्हें राजनैतिक नुकसान हो सकता है।
इसमें केन्द्र और राज्य की दोनों सरकारें शामिल होती हैं। इसलिए हम देखते हैं कि जब कोई बड़ी घटना हो जाती है तभी सरकार एक्शन में आती है। लेकिन मामला ठंडा होते ही दोबारा से शांत हो जाती है।
नक्सलवाद पर चर्चा ना होना
नक्सलवाद को बढ़ने के पीछे एक कारण ये भी है कि हम लोग नक्सल पर चर्चा करना नहीं पसंद करते हैं। क्योंकि हमें लगता है कि यह तो केवल देश के कुछ जिलों की समस्या है। लेकिन यदि हम इस बात पर चर्चा करेंगे तो देखेंगे कि हमारी सरकार भी नक्सलवाद पर सख्त होगी और उससे निपटने के लिए मजबूत कदम उठाएगी।
नक्सलवाद के खिलाफ प्रमुख अभियान
ऐसा नहीं है कि सरकार नक्सलवाद को हाथ पे हाथ रखकर देख रही है। इसके लिए सरकार की तरफ से कई अभियान भी चलाए गए जिनका असर भी काफी हद तक देखने को मिला। आइए उन अभियानों के बारे में एक नजर डालते हैं।
ऑपरेशन ग्रीन हंट
नक्सलवाद से निपटने में सबसे पहले सरकार की तरफ से ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया गया था। जो कि साल 2010 में चलाया गया था। इसका मकसद था कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा बलों की तैनाती की जाए। जिससे आम लोग खुलकर वहां अपना जीवन जी सकें। इसका फायदा ये हुआ है साल 2010 में जब इस ऑपरेशन को चलाया गया था तो देश में नक्सल प्रभावित कुल 223 जिले थे। जबकि आज इनकी संख्या महज 90 रह गई है। इससे आप समझ सकते हैं कि यह अभियान कितना सफल रहा है।
आकांक्षी जिला कार्यक्रम
आकांक्षी जिला कार्यक्रम को जिले स्तर पर चलाया गया था। जिसका मकसद था कि प्रत्येक जिले को केन्द्र में रखकर उससे जुड़ी समस्या और उसके समाधान के ऊपर काम किया जाए। जिससे वहां रहने वाले लोग प्रशासन का सहयोग करें। साथ ही लोगों को नक्सलवाद से बाहर निकाला जा सके। नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में इसका भी काफी फायदा मिला है।
ऑपरेशन ‘समाधान’
ऑपरेशन समाधान गृह मंत्रालय की तरफ से चलाया गया था। इसका मकसद था कि नक्सल से निपटने के लिए एक सही योजना, प्रक्षिक्षण और कुशल नेतृत्व के साथ काम किया जाए। जिससे इससे निपटा जा सके।
साथ ही इसके अंदर नक्सली लोगों को किसी तरह की मदद को रोकना शामिल था। जिससे उनकी आय के जरिया को समाप्त किया जा सके। साथ ही उनके ऊपर लगातार प्रहार किया जा सके। इसका मकसद था कि नक्सल को खत्म करने के साथ नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों की समस्या का समाधान भी करना था।
तकनीकी मदद में सहयोग
जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि तकनीक नक्सलवाद से निपटने में काफी अहम भूमिका अदा कर सकती है। लिहाजा तकनीक को काफी अहम हिस्सा बनाया गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़क, पानी, बिजली और संचार की सही व्यवस्था की गई। जिससे वहां के लोगों को प्रभासन भरोसे में लेने में कामयाब हुआ ही। साथ ही विपरीत हालातों में मदद भी आसानी से पहुंचाई जा सकती थी।
नक्सलवाद का समाधान
आइए अब हम आपको नक्सलवाद का समाधान बताते हैं। यदि हम सभी मिलकर नक्सलवाद के खिलाफ इस रास्ते पर काम करें तो हमारे देश से एक ना एक दिन नक्सलवाद को जड़ से समाप्त किया जा सकता है।
लोगों में जागरूकता फैलाना
नक्सलवाद की समस्या को खत्म करने के लिए सबसे पहले लोगों में जागरूकता लानी होगी। क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि लोगों नक्सलियों के बहकावे में आकर ना चाहते हुए भी नक्सली बन जाते हैं।
लेकिन यदि हम उन लोगों में जागरूकता ला देंगे तो वो नक्सल के खिलाफ इस लड़ाई में प्रशासन की काफी मदद करेंगे। साथ ही अन्य लोगों को भी नक्सलवाद के प्रति जागरूक करने का काम करेंगे। तो कोई भी इंसान नक्सली बनना पसंद नहीं करेगा। क्योंकि वो सरकार की नीतियों के प्रति जागरूक होगा।
सुशासन स्थापित करना
नक्सल के बढ़ने के पीछे कारण ये भी है कि आज जिन इलाकों में नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं। वहां नक्सली लोगों का बोलबाला है। जिहाजा बहुत से लोग जो नक्सल के खिलाफ भी हैं। वो मजबूरी में नक्सल के साथ जुड़ जाते हैं।
जिसके बाद वो नक्सली लोगों की सहायता करने में और अन्य तरह की चीजों में मदद करते हैं। इससे कहीं ना कहीं नक्सली मजबूत ही होते हैं।
लोगों को शिक्षा और रोजगार देना
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में देखा जाता है कि लोगों के ना तो शिक्षा होती है ना ही किसी तरह का रोजगार होता है। इसलिए वो ना चाहते हुए भी नक्सली बनने को मजबूर हो जाते हैं। क्योंकि उनके पास सही मायने में कोई दूसरा रास्ता ही नहीं रहता है।
इसलिए सरकार और प्रशासन को चाहिए कि उन लोगों के रोजगार और शिक्षा की सही व्यवस्था करें। जिससे वो लोग खाली भी ना रहें और अपना जीवन यापन सही से कर सकें। क्योंकि अक्सर खाली इंसान मजबूरी में नक्सली ही बनने का रास्ता सही समझने लगता है।
असमानता को समाप्त किया जाए
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में लोगों में लोगों के जीवन में आज भी बहुत असमानता है। इसलिए देखा जाता है कि लोगों में इससे असंतोष की भावना पैदा होती है। जिससे वो लोग खुद को आगे बढ़ाने के लिए नक्सली के साथ जुड़ जाते हैं।
इसलिए प्रशासन को देखना चाहिए कि लोगों में असमानता क्यों मौजूद है। साथ ही इसे कैसे समाप्त किया जा सकता है। इसके बाद उन बिदुंओं पर लगातार काम करना चाहिए। जिससे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में लोगों में आसमानता को खत्म किया जा सके।
खुफिया एंजेंसी को मजबूत करना
नक्सलियों को पकड़ने में सबसे अहम भूमिका खुफिया एंजेंसी की होती है। लिहजा इस बात की सख्त जरूरत है कि आज के समय में खुफिया एंजेंसियों को पूरी तरह से मजबूत किया जाए। जिससे कोई भी नक्सली हमला होने से पहले उनके पास उसकी सही जानकारी आ जाए।
यदि ऐसा होगा तो उससे निपटने में काफी मदद मिलेगी। क्योंकि अक्सर बिना जानकारी के नक्सली अचानक से पुलिस और आम लोगों को निशाना बनाते हैं। इसके बाद प्रशासन जानकारी के अभाव में कुछ भी करने में असमर्थ हो जाता है।
फंडिंग को रोकना
नक्सलवाद को बढ़ने के पीछे उसे मिलने वाली फंडिंग भी जिम्मेदार है। क्योंकि देखा जाता है कि नक्सली अपने क्षेत्रों में लोगों को डरा धमका कर अपने मुनाफे का 3 से 5 प्रतिशत हिस्सा रख लेते हैं। यदि वो लोग उन्हें नहीं देते हैं तो उनके काम को बंद करवा दिया जाता है।
इस तरह से इनके पास जो पैसा आता है उससे नक्सली मजबूत होते रहते हैं। इसलिए नक्सलवाद को रोकने के लिए ऐसे लोगों को पूरी सुरक्षा देनी होगी जो कि उन्हें फंडिंग देने का काम करते हैं। ताकि उन्हें कोई किसी तरह से फंड ना करे।
नक्सलवाद और आंतकवाद में अंतर
अब आपने जब पूरी तरह से जान लिया है कि नक्सलवाद क्या है और नक्सली किसे कहते हैं तो आपके जहन में ये सवाल आ रहा होगा कि नक्सलवाद और आंतकवाद में क्या अंतर होता है। तो हम आपको बता दें कि नक्सलवाद अपने ही देश के लोगों के द्वारा किया जाता है। साथ ही ये केवल देश के अंदर रहता है।
इसके अंदर नक्सली सेना और पुलिस को निशाना बनाते हैं। साथ ही इनकी आय का जरिया भी अपने ही इलाके के लोग होते हैं। जिससे इनको हथियार और अन्य चीजें मिलती हैं।
जबकि आंतकवाद के अंदर कोई दुश्मन देश शामिल होता है। वही अपने देश से आंतकियों को पैसे और हथियार भेजता है। इसके बाद आंतकी देश के आम नागरिकों और पुलिस को निशाना बनाने का काम करता है। खास बात ये है कि आंतकवाद के खिलाफ देश का हर नागरिक होता है। जबकि नक्सलवाद में देश के लोग ही शामिल होते हैं। जिससे नक्सलवाद से निपटने में पुलिस और प्रशासन को काफी समस्या का सामना करना पड़ता है।
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नक्सलवाद क्या है?
नक्सलवाद सही मायने में एक किसान और मजूदरों का हथियारों के साथ सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन है। जिसकी शुरूआत साल 1967 में हुई थी।
नक्सलवाद की शुरूआत कहां से हुई थी?
नक्सलवाद की शुरूआत बंगाल से साल 1967 भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल के द्वारा इसकी शुरूआत की गई थी।
नक्सवाद लोगों को कैसे नुकसान पहुंचाता है?
नक्सलवाद लोगों से वसूली करता है साथ ही उनका प्रयोग सरकार के खिलाफ करता है। जिससे उनके सारा जीवन नक्सली बनकर ही बीत जाता है और उनका सही तरीके से विकास नहीं हो पाता है।
नक्सलवाद से कैसे निपटा जा सकता है?
नक्सलवाद से निपटने के लिए पुलिस प्रशासन को शिक्षा और रोजागार देने के साथ खुद को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काफी मजबूत करना होगा।
Conclusion
आशा है कि अब आप समझ गए होंगे कि नक्सलवाद क्या है और नक्सली किसे कहते हैं। इसे जानने के बाद आप समझ सकते हैं कि नक्सलवाद आज के समय में हमारे देश की कितनी बड़ी समस्या बन चुकी है। साथ ही इससे निपटना कितना जरूरी हो गया है। क्योंकि यदि हम नक्सली से आज नहीं निपट सके तो समय के साथ इसका विस्तार ही होता जाएगा।