कृष्ण भगवान का जन्म कैसे हुआ?
कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा; हिन्दू देवी देवताओं में कृष्ण भगवान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि जब पृथ्वी पर अन्याय और अत्याचार बढ़ेगा तो कृष्ण भगवान उसको खत्म करने के लिए दोबारा से पृथ्वी पर जन्म लेंगे। जिसके बाद फिर एकबार साबित होगा कि अधर्म कभी विजयी नहीं हो सकता है।
लेकिन यदि आप अभी तक कृष्ण भगवान के बारे में नहीं जानते हैं तो हमारे इस लेख को अंत तक पढि़ए। अपने इस लेख में हम आपको कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन और गाथा और श्री कृष्ण का जीवन परिचय देंगे। साथ ही उनके जन्म की रोचक कहानी बताएंगे जो कि बेहद कम लोग जानते हैं।
कौन थे श्री कृष्ण भगवान?
श्री कृष्ण भगवान हिन्दू देवी दवताओं में बेहद लोकप्रिय हुआ करते हैं। आज उनके जन्मदिवस को हर साल जन्म अष्टमी के रूप में हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। साथ ही उनकी पूजा घरों और मंदिरों में भी की जाती है। माना जाता है कि जो श्री कृष्ण की पूजा करता है उसकी श्री कृष्ण भगवान हमेशा रक्षा करते हैं। जिससे कभी उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। यही वजह है कि आज श्री कृष्ण के भक्त देश ही नहीं पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। उनकी मूर्ति हर मंदिर में लगी हुई है।
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कैसे हुआ श्री कृष्ण का जन्म?
श्री कृष्ण की के जन्म की कहानी बेहद ही लंबी और रोचक है। आइए अब हम आपको कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा विस्तार से बताते हैं। जिससे आप समझ सकें कि वाकई श्री कृष्ण भगवान पृथ्वी पर राक्षसों और असुरों का काल बनकर आए थे।
कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा: एक समय था जब पृथ्वी पर अधर्म और अन्याय लगातार बढ़ता ही जा रहा था तो पृथ्वी माता से ये सब देखा नहीं जा रहा था। तो वो गाय का रूप धारण कर भगवान ब्रम्हा और विष्णु के पास गई और कहने लगी कि अब आपको कुछ करना ही होगा। वरना पृथ्वी पर अनर्थ हो जाएगा। जिसके बाद भगवान ने निर्णय लिया कि अब वो खुद इंसान का रूप धारण कर पृथ्वी पर अवतार लेंगे और इस सब का अंत करेंगे। वो इस काम के लिए आठवीं संतान के रूप में आएंगे।
कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा (कंस का उदय): इसके बाद कहा जाता है कि गोकुल नगरी में एक राजा उग्रसेन हुआ करते थे। उसका बेटा कंस होता था। कंस इतना दुष्ट था कि उसने अपने पिता को ही कारागार में बंद कर दिया था। जिसके ऊपर अनेकों सैनिकों का पहरा बैठा दिया था। कहता था कि इस नगर का राजा मैं ही हूं। मेरी बिना इजाजत के कुछ भी नहीं हो सकता है। कंस का इतना भय था कि उसके भय के चलते पूरे नगर के लोग कभी कुछ बोल नहीं सकते थे।
कंस की एक चचेरी बहन देवकी भी थी। जो कि कंस के पिता के छोटे भाई देवक की बेटी थी। कंस उस बहन से बेहद ही प्यार करता था। उसने तय किया था कि उसका विवाह वो बेहद धूमधाम से करेगा।
कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा (बहन का विवाह): जिसके लिए कंस वसुदेव नामक युवक को अपनी बहन से विवाह के लिए प्रस्ताव भेजता है। वसुदेव विवाह के लिए तैयार हो जाता है। जिसके बाद उसकी बहन और वसुदेव एक बंधन में बंधने के लिए तैयार हो जाते हैं।
इसके बाद कंस पूरे धूमधाम से शहनाई और गाजे बाजे के साथ अपनी बहन देवकी का विवाह संपन्न करता है। अपनी बहन को तोहफे के तौर पर बहुत सारा धन दौलत देता है। ताकि उसे कभी कष्ट ना हो।
लेकिन अंत में विदाई के समय कंस बेहद भावुक हो जाता है। कहता है कि मैंने अपनी बहन देवकी को इतने प्यार से पाला पोसा था अब वो अपने ससुराल जा रही है। इसके लिए कंस फैसला करता है कि वो भी रथ पर बैठकर अपनी बहन को ससुराल तक छोड़ने जाएगा। जिस पर किसी को ऐतराज नहीं होता है। कंस भी उसी रथ पर बैठता है और रथ आगे चल पड़ता है।
रथ सड़क पर आगे तेजी से बढ़ता रहता है कि बीच रास्ते में अचानक भविष्यवाणी होती है कि ‘हे कंस तू जिस बहन को वसुदेव के साथ छोड़ने जा उसी बहन की कोख से जन्मा आठवां लड़का तेरा काल बनकर आएगा और तेरा वध करेगा’। कंस पहले तो इस भविष्यवाणी को हल्के में लेता है, लेकिन अगले ही पल उसे समझ आ जाता है इसका कोई समाधान करना होगा ताकि बहन को आठवीं संतान हो ही ना। ताकि ये भविष्यवाणी गलत साबित हो जाए।
जिसके लिए वो निर्णय करता है कि क्यों ना वसुदेव का अभी इसी समय वध कर दिया जाए। जिससे ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। लेकिन उसका ये फैसला सुनकर उसकी बहन देवकी उसके सामने हाथ जोड़ने लगती है। कहती है कि भाई अगर आपको मारना ही तो मुझे मार दीजिए। वसुदेव का इसमें कोई दोष नहीं है। इसलिए उसके साथ ये अन्याय मत कीजिए।
Krishna bhagwan ki sampurn jeevan gaatha (कारागार में बंदी): इस बहस के बीच ये रास्ता निकाला जाता है कि वसुदेव और बहन देवकी कंस के महल में बंदी के तौर पर रहेंगे। फिर उनको जैसे ही कोई बच्चा जन्मेगा उसे वो उसी समय कंस के हवाले कर देंगे। जिसके बाद कंस उसी समय उसकी हत्या कर देगा। ताकि भविष्य में उसके लिए किसी तरह को खतरा ना रहे।
इस फैसले से उसकी बहन और वसुदेव सहमत हो जाते हैं। क्योंकि कंस इतना क्रूर था कि वो एक मिनट में कुछ भी कर सकता था। अंत में रथ वापिस आ जाता है और सैनिाकों के कड़े पहरे में वसुदेव और कंस की बहन को रखा जाता है। ताकि किसी तरह की गलती ना हो सके।
Krishna bhagwan ki sampurn jeevan gaatha (पहली संतान का जन्म): इसी कठिन समय के दौरान वो समय आ जाता है जब कंस की बहन को बच्चा होने वाला होता है। लेकिन पहली संतान जैसे ही पैदा होती है तो वादे के मुताबिक उसे कंस के हवाले कर दिया जाता है। जिसे कंस बेहद की क्रूर तरीके से जमीन पर पटक कर मार देता है। कंस की बहन इस तरह से अपनी पहली संतान को मरता हुआ देख नहीं पाती है और बेहोश हो जाती है। जिसके कुछ समय बाद उसे होश आता है। लेकिन कंस तो कंस ही था।
इसी तरह से ये सिलसिला चलता रहता है। कंस की बहन को जैसे ही कोई संतान होती है। कंस उसी समय उसे मार देता है। इस अन्याय पर सालों तक ना तो कोई कंस को समझा पाया था ना ही वसुदेव और उसकी पत्नी कुछ कर सकते थे। क्योंकि उनके ऊपर सैनिकों का कड़ा पहरा लगा हुआ था। जिसके चलते वो कारागार से एक कदम भी बाहर नहीं रख सकत थे। कारागार से भागने की बात तो दूर थी। देवकी की कुल अबतक सात संतान इसी तरह कंस के हाथों मारी जा चुकी थी।
Krishna bhagwan ki sampurn jeevan gaatha (आठवीं संतान का जन्म): आगे चलकर इसी तरह वो समय आ जाता है कि कंस की बहन को आठवीं संतान जन्म लेने वाली होती है। जिसे भविष्यवाणी में कंस का काल बताया गया था। कंस को जैसे ही पता चलता है कि अब आठवीं संतान का समय आ गया है, तो सैनिकों का पहरा और कड़ा कर देता है। खुद भी समय समय पर निगरानी करने लगता है। ताकि किसी तरह से भी आठवीं संतान बच ना सकें। क्योंकि कहा गया था कि यदि आठवीं संतान बच गई तो वो बड़ा होकर उसका सर्वनाश कर देगा।
तभी इस बात की भनक वसुदेव के एक मित्र को लगती है कि उसका मित्र वसुदेव इन दिनों कारागार में बंद हैं। जिससे वो बड़ा दुखी होता है। उन दिनों उसकी पत्नी भी गर्भवती होती है। जिसे कुछ महीनों बाद ही बच्चा होने वाला होता है। जिससे वो वसुदेव की परेशानी को काफी हद तक महसूस कर पाता है। लेकिन कारागार में बंद होने के चलते वसुदेव और उनकी मुलाकात किसी भी तरह से संभव नहीं हो पाती है।
श्री कृष्ण का जीवन परिचय (भगवान श्री कष्ण का चमत्कार): इसके बाद वो समय आ जाता है कि कि कंस की बहन को आठवीं संतान पैदा हो जाती है। लेकिन तभी एक चमत्कार हो जाता है। आठवीं संतान के जन्म के साथ ही पूरी कारागार में जोरदार रोशनी फैल जाती है। संतान अचानक से बड़ा रूप धारण करके कहती है कि मैं कोई बालक नहीं हूं। मैं तो कंस का वध करने के लिए ही आया हूं। आप मुझे टोकरी में रखकर अपने मित्र के घर छोड़ आइए और उनके यहां जन्मी संतान को लाकर कंस के हवाले कर दीजिए। बस तभी वो चमत्कार समाप्त होता है और वापस से बालक का रूप में प्रकट हो जाते हैं।
इसके बाद वसुदेव देखते हैं कि कारागार के दरवाजे अपने आप खुल जाते हैं। हाथों में लगी हथकड़ी टूट जाती है। कंस की तरफ से लगाए गए सैनिक गहरी नींद में सो जाते हैं। जिससे उनके मन से सारा भय समाप्त हो जाता है।
बस तभी वसुदेव श्री कृष्ण के बाल स्वरूप में टोकरी में रखते हैं और गंगा की ऊफनती लहरों में ले जा रहे होते हैं। तभी बीच में गंगा की लहर इतनी तेज हो जाती है कि उनका आगे बढ़ना ही मुश्किल हो जाता है। जिसे देख कृष्ण भगवान टोकरी में से अपने पैर नीचे लटका देते हैं। जिसके बाद सारी लहर शांत हो जाती है। माना जाता है ऐसा इसलिए हो रहा होता है क्योंकि गंगा भी श्री कृष्ण के पैर छूना चाहती थी। ताकि वो भी इस पावन घड़ी में अपना कुछ योगदान दे सके।
इसके बाद वसुदेव अपने मित्र को सारी कहानी बताते हैं। तो वो कहता है कि आज मेरे यहां एक कन्या का जन्म हुआ है। आप श्री कृष्ण को मेरे यहां छोड़ दीजिए और उस कन्या को ले जाकर कंस को दे दीजिए।
बस तभी वसुदेव उस कन्या को लेकर वापिस कारागार की तरफ चल पड़ते हैं। वापिस आकर देखते हैं। कारागार के सभी दरवाजे खुले होते हैं। सैनिक गहरी नींद में होते हैं। जैसे ही वो कारागार में प्रवेश कर जाते हैं। तो दोबारा से उनके हाथों में हथकड़ी लग जाती है। सैनिक जाग जाते हैं।
तभी सैनिकों को पता चलता है कि आठवीं संतान का जन्म हो गया है। इसकी सूचना वो कंस तक पहुंचा देते हैं। लेकिन जैसे ही कंस को पता चलता है कि आठवीं संतान लड़की है तो वो जोर जोर से हंसने लगता है। कन्या का समाचार सुनकर कंस कहता है कि लगता है। भगवान भी उससे डर गए। तभी लड़के की बजाय लड़की का जन्म हुआ है। तभी वो कारागार में आता है और उस लड़की को हाथ में लेकर मारने के लिए जमीन पर पटकने की कोशिश करता है।
लेकिन वो लड़की जमीन पर गिरने की बजाया हवा में उड़ जाती है। और कंस को कहती है कि अरे कंस तू क्या मुझे मारेगा, तुझे मारने वाला खुद इस धरती पर जन्म ले चुका है। जिसे तू मारना चाहता था, वो पहले ही तेरे कारागार से बाहर जा चुका है। अब तो बस तेरे अधर्म का अंत समय करीब आ रहा है।
श्री कृष्ण का जीवन परिचय (कंस का वध): इसके बाद श्री कृष्ण बड़े होते हैं और आकर कंस का वध करते हैं। जिसके बाद कंस के पिता उग्रसेन को भी कारागार से मुक्त किया जाता है। जिसे कंस ने बंदी बनाया हुआ था। दोबारा से उन्हें राजपाट दे दिया जाता है। तब से हर साल श्री कृष्ण के जन्म को जन्म अष्टमी के रूप में पूरे देश ही नहीं दुनियाभर में धूमधाम से मनाया जाता है।
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क्या होता है जन्मअष्टमी के दिन?
हर साल भाद्र मास की अष्टमी को कृष्ण भगवान के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। जो कि अगस्त या सितंबर के महीने में आता है। इस दिन मंदिरों को बड़े ही भव्य तरीके से सजाया जाता है। लोग मंदिरों में दर्शन करने आते हैं। साथ ही बच्चे कृष्ण का रूप धारण करके बैठते हैं। रात को जैस की 12 बजते हैं, तो मंदिर में माना जाता है किे कृष्ण का जन्म हो गया है। लोग अपने अपने हिसाब से उनकी खुशी मनाते हैं। लोग कृष्ण भगवान का आर्शीवाद लेते हैं। ताकि उनका जीवन सुखमय बना रहे।
Conclusion
आशा है कि आप Krishna bhagwan ki sampurn jeevan gaatha कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा जो जान चुके होंगे। यदि आप इस श्री कृष्ण का जीवन परिचय के इस रोचक प्रसंग को समझ चुके हैं तो हमारे इस लेख को अपने दोस्तों तक भी अवश्य शेयर करें। साथ ही आपका कोई सुझाव या सवाल है तो नीचे कमेंट करें।
Disclaimer
ऊपर दी गई पूरी जानकारी इंटरनेट और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर दी गई है। ‘All in hindi’ इसकी किसी भी तरह से पुष्टि नहीं करता है।