Office mein saman vetan ka adhikar: अगर आप किसी ऑफिस में काम करते हैं और अन्य कर्मी आपके साथ समान समय पर और समान तरीके से समान काम करते हैं, तो निश्चित रूप से आपके और आपके साथ काम करने वाले अन्य कर्मियों के बीच वेतन की समानता अवश्य होनी चाहिए ।
ऑफिस में समान वेतन का अधिकार सरकार द्वारा दिया गया एक कानूनी अधिकार है, जिसे प्राप्त करने का प्रत्येक भारतीय नागरिक को हक है। यदि आप अपने ऑफिस के लिए एक ही काम विभिन्न लोगों के साथ कर रहे हैं, तो आपको निश्चित रूप से उतनी ही आय प्राप्त करनी होगी चाहिए जितनी आपके स्तर के अन्य कर्मियों को मिल रही है।
यदि ऐसा नहीं है, तो आप उसके लिए अपने बॉस से बात कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि समान योग्यता और इसी तरह के काम के मामले में ही ऑफिस में समान वेतन का अधिकार लागू होता है, यदि अन्य कर्मचारी आपके समान काम कर रहे है, और उसकी योग्यता आपके जैसी ही है। इस मामले में आपको उनके बराबर आय का भुगतान ही किया जाना जरूरी होता है। इसलिए कार्यालय में समान वेतन के अधिकार के नियम को अच्छी तरह से समझने की आवश्यकता है।
ऑफिस में समान वेतन का अधिकार के नियम में हमें विभिन्न कर्मचारियों के समान वेतन प्राप्त करने में मदद मिलती है, कभी-कभी यह होता है कि समान योग्यता और समान कार्य वाले अधिकारियों के वेतन में अंतर होता है। इससे कम वेतन पाने वाले कर्मचारी का काम करने का मन नहीं करता है और इसके लिए आप राजस्व शाखा कार्यालय जा सकते हैं। और अपने ऑफिस में समान वेतन का अधिकार मांग सकते है।चलिए आज के इस लेख में जानते है कि ऑफिस में समान वेतन के अधिकार से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारी, जो आपके जानने के लिए जरूरी है…
ऑफिस में समान वेतन का अधिकार क्या है?
भारतीय कार्यालय में समान वेतन का अधिकार पुरुषों और महिलाओं के वेतन में समानता को दर्शाता है, और पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता होने के अधिकार को भी प्रदर्शित करता है।यदि आपके कार्यस्थल के लिए समान योग्यता रखने वाले और समान कार्य करने वाले पुरुष और महिलाएं हैं, तो प्रत्येक का वेतन समान होना चाहिए। महिला या पुरुष होने के कारण, बहुत कम या अधिक वेतन देने वाली एजेंसियों, कंपनी या ऑफिस में समान वेतन अधिकार बनाए गए है ।
भारत में पुरुष वर्चस्व भावना होने के कारण, समान वेतन का अधिकार अधिनियम लागू होने से पहले, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता था। जब पुरुष और महिलाएं एक ही कार्यस्थल पर एक ही तरह का कार्य करते थे, तो पुरुषों और महिलाओं के समान काम करने के बाद भी महिलाओं को कम वेतन मिलने के कारण महिलाओं का शोषण होता था, यानी एक जैसे काम लेने के बाद भी महिलाओं को कम वेतन देना इसे महिलाओं का शोषण कहा जाता था।
उसके बाद कार्यालय में समान वेतन के अधिकार अधिनियम के माध्यम से सरकार ने समान कार्य करने वाले पुरुषों और महिलाओं को समान वेतन देने का नियम बनाया और फिर महिलाओं को भी पुरुषों के समान आय मिलने लगी, जिससे पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से देखा जाने लगा।
समान वेतन के अधिकार का उद्देश्य
आज के समय में भारतीय समाज में पुरुषों को महिलाओं के बराबर या महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने को प्राथमिकता दी जा रही है। भारतीय कानून के अधिकारों के अनुसार महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर ही स्थान दिया गया है। यह बात आज के समय में साबित भी हो रही है, क्योंकि हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।
ऐसी स्थिति में हर महिला, विकास के उद्देश्य से पुरुषों के समान अधिकार और समान कार्य करने के लिए सुविधाएँ और वेतन चाहती हैं।इसलिए सरकार ने महिलाओं के विकास के लिए विभिन्न प्रकार के संवैधानिक संशोधन किए, जिसमें हर क्षेत्र में महिलाओं को प्राथमिकता दी गई, समान वेतन का अधिकार अधिनियम के आने से, ऑफिस के भीतर जो एक अंतर रहा है, पुरुषों और महिलाओं की आय का, वो समाप्त हो जाता है।
समान काम के लिए समान वेतन कौन से अनुच्छेद में है?
समान काम के लिए ऑफिस में समान वेतन के अधिकार के तहत स्थायी कर्मचारी, चाहे पुरुष हो या महिला, कार्यालय में समान भूमिका रखते हुए और बिना किसी अंतर के समान कार्य करते हुए समान वेतन पाने का अधिकार रखते है। भारत के संविधान के अनुसार, अनुच्छेद 141 के तहत, समान योग्यता रखने वाले और किसी भी ऑफिस में समान काम करने वाले पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान वेतन निर्धारित और भुगतान किया जाना चाहिए।
इस अधिनियम का पालन 10 अप्रैल 1979 को संविधान संशोधन के तहत किया गया, जिसमें महिलाओं को पुरुषों के समान काम करने और योग्यता रखने वालों के समान वेतन पाने का अधिकार दिया गया था। ऑफिस में समान वेतन के अधिकार का मसौदा 8 मार्च 1976 को तैयार किया गया और 10 अप्रैल 1979 को महिलाओं के समग्र विकास और महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने के लिए जाना गया।
ऑफिस में समान वेतन के अधिकार के नियम
महिलाओं के सम्पूर्ण विकास के लिए ऑफिस, घर, कॉलेज और विभिन्न स्थानों पर समान अधिकार दिए जाने जरुरी है, इसके लिए सरकार ने बहुत से संवैधानिक संशोधन किए, जिनमें महिला को पुरुषों के समान अधिकार दिए गए हैं।
इसलिए किसी भी ऑफिस में काम करने वाली महिलाओं को भी पुरुषों के समान वेतन देने का अधिकार दिया गया, जो कि अधिनियम 141 में समान वेतन के अधिकार के तहत लागू किया गया। ऑफिस में समान वेतन के अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित दिशा-निर्देश या नियम बनाए गए हैं :
- समान कार्य करने वाली महिलाओं और समान योग्यता वाले पुरुषों को समान वेतन दिया जाना चाहिए।
- महिलाएं अब शाम 7:00 बजे के बाद ऑफिस या कंपनी में काम नहीं करेंगी।
- महिलाओं को सुबह 6:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक काम करने की अनुमति दी गई है।
- शाम को 7:00 बजे के बाद यदि कोई महिला किसी महत्वपूर्ण जरूरत के कारण कार्य करती है तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संस्था की है।
- महिलाओं को छुट्टी के दिन काम करने के लिए नहीं बुलाया जा सकता और अगर जरूरी हो तो उनकी सुरक्षा के पूरे इंतजाम होने चाहिए।
- महिलाएं अब ऑफिस में खुद से काम अकेले सारा काम नहीं करेंगी, उनके साथ और भी कर्मचारी होने चाहिए।
- अगर कोई लड़की योग्य है तो उसे पुरुष के बराबर प्रमोशन मिलना चाहिए।
- महिलाओं को पुरुषों के बराबर आय के साथ-साथ भत्ता, बोनस और पुरुषों की तरह अन्य सभी सुविधा भी मिलनी चाहिए।
- महिलाएं अब कोई भी अस्थाई काम नहीं करेंगी।
- नियम 141 की अवहेलना करने पर संस्था, कंपनी के मालिक को मुआवजा देने के साथ-साथ दंडित भी किया जा सकता है।
FAQ
भारत में समान काम के लिए समान वेतन क्या है?
भारत में समान काम के लिए समान वेतन के अधिकार के तहत महिलाओं को पुरुषों के समान वेतन पाने का अधिकार दिया गया।यह अधिनियम 8 मार्च 1976 को अनुच्छेद 141 के तहत संशोधित किया गया था, जिसके तहत पुरुषों और महिलाओं में काम में होने वाली असमानता को बेहतर करने की कोशिश की गई थी, अर्थात इस नियम के तहत समान योग्यता वाले पुरुष और महिलाएं समान काम करते हैं। और इसके लिए उन्हें समान वेतन मिलना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी 2022 को कहा कि कार्यस्थल पर समान वेतन का अधिकार किसी भी कर्मचारी का अनिवार्य अधिकार नहीं है, भले ही यह संविधान द्वारा दिया गया संवैधानिक अधिकार है।
समान काम के लिए ऑफिस में समान वेतन का अधिकार कब लागू हुआ था ?
ऑफिस में समान वेतन का अधिकार 1979 से लागू हुआ, लेकिन 2019 में भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने इसे फिर से संज्ञान में लिया और कहा कि स्थायी कर्मियों को स्थायी प्रतिबंध से कम भुगतान करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है,और सातवां वेतन आयोग इसके तहत न्यूनतम वेतन 18000 निर्धारित किया गया है, जो प्रत्येक स्थायी कर्मचारी के लिए अनिवार्य कर दिया गया है।
समान वेतन अधिनियम क्या था?
कानून के मुताबिक समान वेतन का अधिकार हर महिला का हक है। समान पारिश्रमिक अधिनियम के अनुसार, अगर बात वेतन या मजदूरी की हो तो लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं किया जा सकता। महिला और पुरुषों के बीच वेतन या फिर मजदूरी के भेदभाव खत्म करने के लिए 1975-76 में समान वेतन अधिनियम बनाया गया था।
मजदूरी ना देने पर नियोक्ता पर कौन सी धारा लगती है?
अगर कोई नियोक्ता आपके द्वारा किये गये कार्य की मजदूरी या वेतन देने से इंकार करता है तो उसे आईपीसी की धारा 406 में जेल का प्रावधान है। इसके लिए आपको श्रमिक न्यायालय, उपभोक्ता न्यायालय या व्यवहार न्यायालय में मामले को दर्ज कराना होगा।
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निष्कर्ष (Conclusion)
आज के इस लेख में हमने आपको ऑफिस में समान वेतन का अधिकार और इससे जुड़ी सभी जानकारी देने की कोशिश की है। हम आशा करते हैं कि आपको हमारा ये लेख पसंद आया हो। इससे जुड़े किसी भी प्रश्न के लिए आप हमे नीचे कमेंट में अपनी बात पूछ सकते है।