Rand sand sidhi sanyasi: काशी जाने की इच्छा रखने वाले लोगों ने ये कहावत तो जरूर सुनी होगी “रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी। इनसे बचे तो सेवे काशी।।” इस कहावत के अलग अलग मतलब निकाले जाते रहे हैं। लेकिन काशी तो काशी ही है। इसलिए काशी जाने से पहले आपको इस कहावत का सही मतलब जरूर पता होना चाहिए। ताकि आप इन चीजों से बचकर सही मायने में काशी के दर्शन कर सकें।
इसलिए यदि आप वहाँ जाने का विचार कर रहे हैं। तो उससे पहले इस कहावत “रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी। इनसे बचे तो सेवे काशी।।” का मतलब अवश्य जान लेना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि आप इन चक्करों में पड़कर काशी पहुंचने से पहले ही रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी के चक्कर में भटक जाएं।
पूरी कहावत
बनिया ठाकुर तेली पासी सबको रोज़ बुलाये कासी रांड सांड सीढ़ी सन्यासी इनसे बचे सो आये कासी इसको उसको भाये कासी क्या-क्या खेल दिखाये कासी राम-घाट से असी-घाट तक सबको भंग पिलाये कासी मणिकर्णिका-घाट निशि-वासर मृतक मनुष्य जलाये कासी कासी का विकास कासी है काहे को घबराये कासी आसमान में उड़नहार को झट धरती पर लाये कासी जिसको आना हो आये पर सोच-समझ कर आये कासी
कब बनी थी ये कहावत?
यदि हम इस कहावत के बनने की बात करें तो इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। इस कहावत को लिखने वाले ने केवल काशी जाने वालों के साथ अपने अनुभव साझा किए हें। संभव के कोई इंसान काशी गया हो और उसका इन सभी चीजों से पाला पड़ा हो और तभी उस कलमकार ने अपनी कलम से लिख दिया हो कि “रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी। इनसे बचे तो सेवे काशी।।”
हालांकि, लिखने वाले ने भी शायद ही सोचा हो कि उसकी लिखी ये चार लाइनें एक दिन काशी जाने की इच्छा रखने वाले हर इंसान के जुबान पर आ जाएंगी। जिससे हर कोई काशी में आने से पहले इन चीजों से सावधान हो जाएगा।
“रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी। इनसे बचे तो सेवे काशी।।”
आइए अब हम आपको रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी के हर शब्द का मतलब बताते हैं। जिससे आप समझ सकें कि आखिर इस कहावत को काशी के लिए क्यों बनाया गया है। साथ ही इसके हर शब्द का मतलब क्या होता है।
रांड
‘रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी’ के अंदर सबसे पहला शब्द ‘रांड’ है। यदि आप रांड का मतलब नहीं जानते हैं तो इसका मतलब उन विधवा महिलाओं से होता है जिनके पति की या तो मृत्यु हो चुकी है या किसी कारण से अब वो अपने पति से अलग हो चुकी हैं। जिन्हें हम लोग आम भाषा में विधवा कहते हैं।
इसलिए माना जाता है कि काशी के अंदर बहुत सारे विधवा आश्रम हैं। जहां बड़ी संख्या में विधवा औरतें रहती हैं। अर्थात लेखक कहना चाहता है कि इन विधवाओं के चक्कर में कोई भी यहां आने वाला इंसान फंस जाता है और बस फिर वो काशी को भूल इन रांड के मोह में फंसकर ही रह जाता है। इसलिए लेखक कहना चाहता है कि काशी आने वाले लोगों को इन रांड से बचकर रहना चाहिए। वरना इन रांड का होकर ही वो रह जाता है।
सांड
‘रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी’ के अंदर दूसरा शब्द ‘सांड’ है। इसका मतलब ये है कि काशी के अंदर हर गली में आपको सांड आसानी से देखने को मिल जाएंगे। यानि आप किसी गली से निकले और संभव है कि अगली गली में सांड़ों के झुंड से आपका पाला पड़ जाए और आपको वहीं उठाकर पटक दे।
लिहाजा काशी जाने वाले लोगों को इन साड़ों से बचकर चलना चाहिए। अन्यथा संभव है कि आपको कोई सांड काशी पहुंचने से पहले ही परलोक के दर्शन करवा दें। जिससे आप काशी तक पहुंच ही ना पाएं।
सीढ़ी
‘रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी’ में अगला शब्द ‘सीढ़ी’ है। इसका मतलब है कि काशी के अंदर जो भी घाट मंदिर या मस्जिद हैं। उनकी सीढ़ीयां बेहद अलग आकार ही हैं। यानि आपको हर सीढ़ी अपने आप में अलग देखने को मिलेगी।
यदि आप चार सीढ़ी के हिसाब के पांचवी सीढ़ी बिना देखे चढ़ जाते हैं, तो संभव है कि आपका पैर फिसले और सीधा जमीन पर आ गिरे। एक तरह से इनकी बनावट पत्थर के पहाड़ की तरह है। कोई सीढ़ी ऊंची है, कोई नीची है कोई छोटी है, कोई बड़ी है। इसलिए हर सीढ़ी को चढ़ते समय आपका पूरा ध्यान सीढ़ी पर ही होना चाहिए। अन्यथा लेखक कहना चाहता है कि अगर आपका ध्यान भटक गया तो आप काशी के दर्शन नहीं कर पाएंगे और उन सीढ़ीयों से ही सीधा स्वर्ग सिधार जाएंगे।
सन्यासी
‘रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी’ में अगला शब्द ‘सन्यासी’ है। यानि काशी में आपको हर घाट पर या हर गली में एक सन्यासी आसानी से देखने को मिल जाएगा। जिनमें ज्यादातर आपको नकली सन्यासी देखने को मिलेंगे। इसलिए लेखक आपको उनसे आगाह करना चाहता है कि संभव है कि आप काशी पहुंचने से पहले ही किसी नकली सन्यासी के बहकावे में आ जाएं और अपना सबकुछ लुटा बैठें।
इसलिए जब भी आप काशी जाएं तो आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आपको सन्यासी की वेश भूषा में दिखने वाले हर आदमी की बातों में नहीं आना है। वरना संभव है आपके पास जो भी सामान हो वो सन्यासी सबकुछ लूट ले और आप आप काशी के बिना दर्शन किए ही वहीं से खाली हाथ लौट जाएं।
क्या ये कहावत आज भी सार्थक है?
जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया कि इस कहावत को किसी अनजान आदमी ने लिखी है और संभव है कि उसका इन सभी चीजों से पाला पड़ गया हो। लिहाजा उसने ये लाइनें लिख दी हों। लेकिन आज काशी काफी बदल चुकी है।
आज ना तो आपको वहां इतनी ‘रांड़’ देखने को मिलेंगी, ना ही गलियों में ‘सांड’ देखने को मिलेंगे। लेकिन हॉ, काशी क्योंकि धर्मनगरी है। इसलिए संभव है कि आपको कुछ हद तक नकली ‘सन्यासी’ आज भी दिख जाएं। पर जागरूक लोगों के लिए इनसे बचना बेहद ही आसान है। क्योंकि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि नकली सन्यासी आपको लूट ले। जबकि ‘सीढ़ी’ की बात करें तो काशी का नाम आज पूरी दुनिया में गूंज चुका है।
लिहाजा आज वहां सीढ़ी भी बेहद शानदार देखने को मिलेंगी। जिनसे गिरने का तो सवाल ही नहीं उठता है। इसलिए यदि आप काशी जाने की सोच रहे हैं तो इस कहावत को सुनकर अपने मन में किसी तरह का संशय ना पालें। काशी आज पुराने समय की तुलना काफी बदल चुकी है।
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Conclusion
आशा है कि अब आप समझ गए होंगे कि “रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी। इनसे बचे तो सेवे काशी।।” का सही मायने में क्या मतलब है। साथ ही इसे कब और किसने लिखा था। हमारे इस लेख का मकसद काशी को बदनाम करना कतई नहीं है। हम तो बस आपको पुराने समय से काशी को लेकर चली आ रही ‘रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी’ जैसे शब्दों का मतलब बताना चाहते हैं। जिससे आप काशी पहुंचकर कह सकें कि “रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी। इनसे बचे तो सेवे काशी।।”